मातृत्व की छाया में आपकी बचपन हमारा गुजरा ………..
आपने ही हमारे निर्मल कोमल मन को काबिल और अनुशासित शील बनाया ……………………..
गलत और सही में फर्क समझाया ……………………..
सदा शिक्षा एवं सत्य के पथ पर चलना सिखाया ………..
फिर हम पंछी बांके गुलिस्ता से उड़ चले ……………..
मंजिलो की तलाश में ……………….जीवन के तजुर्बे बटोरने निकल पड़े …………
बरसो गुजर गए ………..हम जीवन की आपाधापी में यूँ ही भागते रहे ………….
मुश्किलों की धूप में वो मातृत्व की छाया तलाशते रहे
बरसों बाद जब हम फिर से इस गुलिस्ताँ में आते हैं ……………………..
बचपन की यादो में खो जाते है फिर से बच्चे बन जाते हैं …………….
मन में आवाज ये एक आती हैं ……………
सब इच्छाएँ छोड़ कर वो पल फिर से जीना चाहती है काश बिता समय वापस आ जाये ………… ना सिर्फ हमें हर छात्र छात्रा को आपका आशीर्वाद मिल जाये……………..
Leave a Response